
सुभाष राज, स्वतंत्र पत्रकार, 19 सितम्बर 2025: भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था दिखती मजबूत है, लेकिन सिर्फ कागजों में। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि हमारी सैन्य व्यवस्था अभी भी 20वीं सदी की लड़ाइयों के हिसाब से बनी हुई है. ऐसा नहीं है कि बदलाव नहीं हो रहा लेकिन ये छोटे-छोटे हिस्सों में होता है। इससे सेना भविष्य के हाई-टेक युद्धों के लिए तैयार नहीं हो पा रही है। ताजा स्थिति ये है कि हम सैनिक ताकत में पाकिस्तान से थोड़ा आगे हैं लेकिन चीन से काफी पीछे हैं। हालांकि हाल ही 15 से 17 तक पश्चिम बंगाल में हुए संयुक्त कमांडर सम्मेलन में ‘इंडियन आर्म्ड फोर्सेस विज़न 2047’ प्रस्तुत किया गया, जिसमें ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्यों पर बात की गई। विज़न का घोषित उद्देश्य ऐसी सेना तैयार करना बताया गया है जो भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और राष्ट्रीय हितों की पूरी तरह रक्षा कर सके। लेकिन इस विजन के ब्योरे अभी गोपनीय हैं।
हमारे जैसे उभरते देश के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके लिए एक स्पष्ट विज़न, रणनीति और नीति आवश्यक है, जो सैन्य शक्ति को वैश्विक स्तर पर सही स्थान दिलाए। वैसे देश के पास राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सभी जरूरी संस्थाएं मौजूद हैं। जिनमें कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी, नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल, डिफेंस प्लानिंग कमेटी और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद। हैरानी की बात ये है कि इन सबके होते हुए अभी तक राष्ट्र की कोई घोषित राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति नहीं है।
ये जगजाहिर है कि पिछले कुछ वर्षों में सैन्य सुधारों पर बहुत जोर दिया गया है। जिनमें आत्मनिर्भरता बढ़ाने, नई तकनीकों को अपनाने और थिएटर कमांड्स की स्थापना की बात की गई है लेकिन धरातल पर हालात जस के तस दिख रहे हैं। थिएटर कमांड्स के ढांचे पर वायुसेना ने मतभेद जताए हैं। ये मतभेद हाल ही हुई एक सैन्य सेमिनार में सार्वजनिक हुए थे और मीडिया ने इनको स्थान दिया था।
जहां तक आधुनिकीकरण का सवाल है तो पिछले 13 वर्षों से वायुसेना 114 मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट यानि बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमानों की प्रतीक्षा कर रही है। अगर देश के पास औपचारिक रणनीति होती तो इनकी आपूर्ति 2020 तक पूरी हो चुकी होती। मौजूदा हालात में इन विमानों को दोगुनी-तिगुनी कीमत पर खरीदना पड़ रहा है। इसी तरह 2018 में भारत ने रूस के साथ पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने की योजना छोड़ दी और अब उसी तरह के विमानों को विदेशों से खरीदने में रुचि दिखा रहा है। ये उदाहरण दर्शाते हैं कि दीर्घकालिक योजना के अभाव में भारत की सैन्य क्षमता आधुनिक युद्धों के लिए अपर्याप्त है।
राष्ट्रीय सुरक्षा केवल सैन्य शक्ति तक सीमित नहीं है। इसमें भू-रणनीति, अर्थव्यवस्था, ऊर्जा, सूचना प्रणाली, खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, और साइबर सुरक्षा जैसे कई पहलू शामिल होते हैं। सेना देश को भौतिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ राष्ट्रीय हितों की रक्षा भी करती है। इसके लिए एक प्रभावी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता होती है। ये रणनीति 15-20 साल की रणनीतिक परिस्थितियों व खतरों को ध्यान में रखकर बनाई जाती है। इसमें अल्पकालिक, मध्यकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्य तय होते हैं, जिनकी समीक्षा हर पांच साल में की जानी होती है। देश की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति उसकी रक्षा नीति का ढांचा होती है। इसी से सैन्य संसाधनों के अधिकतम और प्रभावी उपयोग सुनिश्चित होते हैं। इसके आधार पर देश की सैन्य रणनीतियां बनती हैं।
संयुक्त कमांडर सम्मेलन में जिस ‘इंडियन आर्म्ड फोर्सेस विज़न 2047’ पर चर्चा हुई उसके सामने इसी तरह की कई चुनौतियां हैं। चूंकि यह विज़न किसी औपचारिक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति से निकला हुआ नहीं दिख रहा है इसलिए इसका आधार भी कमजोर है। इसके अलावा देश की नौकरशाही और राजनीतिक प्रणाली इसके मार्ग की बाधा बन सकती है। क्योंकि ये सभी जानते हैं कि रक्षा और वित्त मंत्रालय के नौकरशाह सेना के बजट को लेकर तरह—तरह के अड़ंगे लगाते रहते हैं।
मजबूती के तमाम प्रचार के बाद भी देश का मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व भी इस मामले में बहुत साहसी प्रतीत नहीं होता है। अगर होता तो मीडियम मल्टीरोल फाइटर प्लेन की सात स्कवाड्रन अब तक वायुसेना की रीढ़ बन गई होतीं। लेकिन वायुसेना अब तक इनके लिए तरस रही है और लड़ाकू स्कवाड्रन की न्यूनतम संख्या 29 पर आपरेट कर रही है। जबकि सरकार ने भारतीय वायुसेना की लड़ाकू स्कवाड्रन संख्या 42 स्वीकृत कर रखी है। रक्षा मंत्रालय की स्थायी समिति की सालाना रिपोर्ट्स में इस तथ्य को कोई भी देख सकता है।
अगर वर्तमान की बात करें तो भारत की सैन्य क्षमता पाकिस्तान से थोड़ी बेहतर लेकिन चीन से काफी पीछे है। 2035 तक भारत को ऐसी सैन्य शक्ति चाहिए जो पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखे और चीन को चुनौती दे सके।
2047 तक भारत की सैन्य क्षमता चीन के बराबर होनी चाहिए। इसके लिए रक्षा बजट को तुरंत बढ़ाकर 2035 तक जीडीपी का 4% और उसके बाद 3% करना होगा। साथ ही, सेना का पुनर्गठन, नई तकनीकों का समावेश, और साइबर व अंतरिक्ष युद्ध क्षमताओं को भी मजबूत करना होगा।
इसलिए सरकार को चाहिए कि वह रक्षा बजट बढ़ाए, सेनाओं के बीच समन्वय को मजबूत करे और दीर्घकालिक योजना को प्राथमिकता दे। भारत 20वीं सदी की सेना के साथ 21वीं सदी की लड़ाई नहीं जीत सकता। एक ठोस राष्ट्रीय सुरक्षा विजन और रणनीति के बिना भारत की सैन्य क्षमता अधूरी रहेगी और यह देश के रणनीतिक हितों के लिए खतरा बन सकती है।